Tuesday, November 8, 2022

Keshavraipatan LA kartik mela kaishavRai Temple

 हाड़ोती संस्कृति...............




केशवरायपाटन में कार्तिक मेले की घूम.......

बूंदी जिले में चंबल नदी के किनारे स्थित केशवरायपाटन में मंगलवार 8 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के महास्नान से पूरे कार्तिक माह नदियों में स्नान के समापन के साथ करीब 15 दिनों तक विविध कार्यक्रमों के साथ चलने वाला मेला शुरू हो जाएगा। पावन चंबल नदी में हजारों श्रद्धालु डुबकी लगा कर देव दर्शन कर पुण्य कमाएंगे। 

** कोटा के रंगपुर से जाने वाले श्रद्धालु नौका की सवारी का भी भरपूर आनंद के साथ मनोहरी दृश्य का लुत्फ भी उठाएंगे। मेले में शहरी और ग्रामीण संस्कृति के मिलेजुले रंग देखने को मिलेंगे। कई प्रकार की दुकानें सजी हैं। खरीददारी करते ग्रामीण और झूलों पर मनोरंजन करते बच्चें मेले की रौनक बनेंगे। रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला मनोरंजन का बड़ा माध्यम होंगे। भक्ति, संस्कृति और मनोरंजन का अनूठा संगम मेले की अपनी विशेषता है। कोटा में दशहरे के मेले के बाद कोटा के समीप ही वर्ष भर का यह बड़ा मेला है।

** सदानीरा चम्बल नदी के किनारे बून्दी जिले के केशवरायपाटन कस्बे में स्थित केशवराय भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर न केवल हाड़ौती क्षेत्र वरन् राजस्थान में विख्यात है। यह मंदिर एक ऊंची जगती पर स्थित है तथा कला - शिल्प का बेहतरीन नमूना है। 

** करीब 60 फीट ऊंचा शिखरबंद इस मंदिर के चारों ओर देवी - देवताओं, अप्सराओं, पशु- पक्षियों आदि की सुंदर प्रतिमाएं बनाई गई हैं। मंदिर में कुछ सीढ़ियां चढ़कर सभागृह एवं अंतराल कारीगरीपूर्ण खंभों पर स्थित हैं। सीढ़ियों के दोनों ओर शिलालेख नजर आते हैं। सभागृह से गर्भगृह जुड़ा है जहां एक चबूतरे पर केशवराय जी की खड़ी मुद्रा में प्रतिमा विराजित है। प्रतिमा की सुंदरता और कारीगरी देखते ही बनती है। मंदिर के सामने ऊंचाई लिए एक जगती पर गरूड़ जी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर में महत्वपूर्ण मृत्युंजय महादेव का मंदिर भी दर्शनीय है।

**  केशवराय जी का मंदिर अत्यन्त प्राचीन बताया जाता है। इस क्षेत्र को किसी समय जम्बू मार्ग और कस्बे को रंतिदेव पाटन कहा जाता था। बताया जाता है कि यहां चम्बल के तट पर रंतिदेव ने तपस्या की थी। यहां सती स्मारक के शिलालेख से मंदिर के बारे में इसके प्राचीन होने की जानकारी मिलती है। कहा जाता है कि परशुराम ने जम्बू मार्गेश्वर अथवा केशवेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर का पुनः निर्माण राव राजा छत्रसाल के समय किया गया। यहां पांडवों की गुफा,उनके द्वारा स्थापित पंच शिवलिंग, हनुमान मंदिर, अंजनी मंदिर,यज्ञशाला एवं वराह मंदिर दर्शनीय हैं।

** सम्पूर्ण मंदिर परिसर एक किलेनुमा रचना की तरह दूर से नजर आता है। यहां लगभग 60 सीढ़ियों का एक मुक्त आकाशीय स्टेडियम भी बनाया गया है। यहीं पर दर्शक बैठ कर मेले के दौरान आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं। इन्हें पार कर मंदिर में पहुंचते हैं। यह मंदिर विशेष रूप से हाड़ौती क्षेत्र के श्रद्धालुओं का प्रमुख आस्था स्थल है। 

**  केशवराय जी के मंदिर पर यूं तो वर्षभर दर्शनार्थी आते हैं परंतु कार्तिक पूर्णिमा के अवसर यहां श्रद्धालु चम्बल में स्थान कर दर्शन करते हैं। इस अवसर पर एक बड़े मेले का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें पर्यटन विभाग भी अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है।

** मुनिसुव्रतनाथ जैन मंदिर: समीप ही श्री मुनि सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र स्थित है। केशवरायपाटन अतिशय क्षेत्र प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी है। यहां मंदिर के तलघर में भगवान मुनि सुव्रतनाथ की प्रतिमा पदमासन मुद्रा में स्थापित की गई है। यह प्रतिमा गहरे हरे पाषाण से निर्मित है तथा इसकी ऊंचाई 4 से 5 फीट है। यह तलघर 16 कारीगरी पूर्ण स्तम्भों पर बना है तथा मूल वेदी पर शिखर बनाया गया है। यहीं पर 13वीं शताब्दी की 6 अन्य प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं। इनमें भगवान पदमप्रभु की सुंदर प्रतिमा भी है।

**  बताया जाता है कि मोहम्मद गौरी ने इस मंदिर को भी तोडऩे का प्रयास किया तथा जब प्रतिमा के पैरों पर हथौड़ी व छैनी से प्रहार किया गया तो दूध की धारा बह निकली। इससे वे वापस लौटने को मजबूर हो गए। बहती हुई चम्बल नदी का प्राकृतिक दृश्य मंदिर से अत्यन्त मनोरम प्रतीत होता है। श्री मुनी सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र प्रबंधन समिति द्वारा यहां की व्यवस्थाओं का संचालन किया जाता है। यहां धर्मशाला में ठहरने व भोजन की व्यवस्था है। 

** इन हिंदू और जैन मंदिरों के साथ मेले में संस्कृति के बिखरे रंगों को देखने का यह एक सुनहरी मौका है। धार्मिक पर्यटन स्थल की छंटा चम्बल नदी के उत्तरी किनारे होने से लुभावनी प्रतीत होती है। यह स्थल जिला मुख्यालय बूंदी से 38 किलोमीटर दूरी पर है परन्तु कोटा सड़क मार्ग से 20 किलोमीटर और रंगपुर होकर नाव से जाने पर कोटा से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर है। 

 - डॉ.प्रभात कुमार सिंघल।

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