भारत में स्वतंत्रता संग्राम किसी एक स्थान से अचानक आरंभ नही हुआ था बल्कि इसकी चिंगारी देश के कोने-कोने में वर्षों तक सुलगती रही। इस भूमि पर ऐसे अनेक वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लिया जिनके शौर्य और साहस ने स्वतंत्रता संग्राम को नई शक्ति प्रदान की। ऐसी ही एक वीरांगना थीं कित्तूर की रानी #चेन्नमा। अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति रानी #चेन्नमा ने वर्ष 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लगभग तीन दशक पूर्व अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध विद्रोह का शंखनाद कर दिया था।
उन दिनों अंग्रेज भारतीय राज्यों को हड़पने के लिए विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र रच रहे थे। उनका ऐसा ही एक षड्यंत्र था डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स (व्यपगत का सिद्धांत) अर्थात जिन राजाओं की अपनी कोई संतान नहीं होती था, ईस्ट इंडिया कंपनी उन राज्यों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लेती थी और ऐसी परिस्थिति में कंपनी दत्तक पुत्र को भी मान्यता नहीं देती थी। अपनी इसी हड़प नीति के तहत अंग्रेजों ने रानी चेन्नमा के राज्य कित्तूर को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय का आदेश दे दिया था। रानी चेन्नमा ने इस आदेश का कड़ा विरोध किया तथा अपनी सेना लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्धभूमि में खड़ी हो गईं। अपने अद्वितीय साहस व कुशल नेतृत्व के कारण उनकी सेना ने अंग्रेजों को पराजित कर दिया था परंतु अपनी हार से क्षुब्ध अंग्रेजों ने कुछ समय पश्चात पुनः कित्तूर पर आक्रमण किया और किले के ही कुछ लोगों की सहायता से रानी चेन्नमा को बंदी बना लिया।
रानी चेन्नमा विषम परिस्थितियों में भी मातृभूमि की सेवा में लगी रहीं, स्वाभिमानी रानी चेन्नमा ने मृत्यु पर्यन्त अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नही की। वे आम जनमानस में स्वतंत्रता की अलख जगाने के लिए सदैव याद की जाएँगी। आज उनकी जयंती के अवसर पर उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम।