Monday, October 24, 2022

Festival Diwali in Hadoti areas of Rajasthan, education kota, five star marketing strategy

 हाड़ोती : दीपावली की लोक परम्परा..





"हीड पूजन" हीडों 

** हमारा देश भारत विभिन्न सांस्कृतिक परम्पराओं का देश हैं। सदियों से ये परंपराएं लोक जीवन को सुर्भित करती हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती हैं। दीपावली पर्व भी देश में विविध परम्पराओं के साथ अपार उत्साह से मनाया जाता है। आपको इस बार दीपावली पर राजस्थान में हाड़ोती क्षेत्र की सदियों से जन - मानस में रची - बसी लोक परम्परा " हीड पूजन" के बारे में बताते हैं।

** दीपावली पर हीड पूजन की परंपरा कितनी प्राचीन है यह तो साफतौर पर कहना संभव नहीं है पर लोक यह परंपरा रियातकाल से इस क्षेत्र में प्रचलित है। इस लोक परम्परा के प्रति यूं तो शहरों में भी प्रचलन था परंतु गांवों में विशेष उल्लास देखने को मिलता है। परंपरा और पर्व के स्वागत के लिए गांवों में घर का आंगन, झोपड़ी की दीवार, घर के बाहर दरवाजे की चौखट, सहन, पशुओं को बांधने का बाड़ा और यहां तक कि चूल्हा भी और हीड पूजन स्थल सभी खूबसूरत मांडना से सजाये जाते हैं। 

** रोशनी से रोशन माहोल में अमावस की रात में  कुंवारे लड़कों में हीड पूजा और प्रज्वलित हीड को ले कर घर - घर टोलियों में हीड के गीत गाते हुए घूमने का जितना उत्साह होता था वह देखते ही बनता था। लोग भी इतने ही उत्साह से हीड ले कर आने वाले लड़कों का इंतजार करते थे।

** हीड परंपरा में हीड एक प्रकार से माटी से बने दीपक की संरचना होती है जो डमरू की तरह दो तल का बना होता है। डमरू में दोनों हिस्से एक दूसरे से उल्टे होते हैं, इसमें दोनों हिस्से ऊपर की और खुले हुए सीधे होते हैं। ऊपर वाला हिस्सा बड़ा होता है और नीचे वाला उससे छोटा होता है। दोनों के मध्य में छोटे से माटी के स्टैंड से जुड़े होते हैं। इस मध्य भाग को बांस  अथवा एक पतले गन्ने को क्रॉस में मोड़ कर फंसा कर  पकड़ने के लिए  स्टैंड बना लिया जाता है।

 ** सबसे पहले इस माटी की हीड का पूजन कर लड़के ऊपर वाले हिस्से में कपास्ये ( बिनोले) और तेल डाल कर इसे  प्रज्वलित किया जाट है। बिनौले बाजार में मिलने वाली दीपावली की पूजन सामग्री में साथ आते हैं। इन्हें कहीं ढूंढना नहीं पड़ता है।

  ** प्रज्वलित हीड ले कर लड़के पहले तो घर के बुजुर्गो के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद स्वरूप हीड के निचले हिस्से में कुछ पैसे डालते हैं। इसके बाद गांवों में लडके हीड से संबंधित लोक गीत गाते हुए घूमते हैं। कई लोकगीत प्रचलित हैं। एक गीत "" हिडों दीवाली तेल मेलो "" और दूसरा "हीडो दीवाली पापड़ी तेल लाओ" विशेष प्रसिद्ध हैं। पहले गीत का भाव है दिवाली की हीड अर्थात प्रकाश आपके द्वार पर आया है, प्रकाश हमेशा रोशन और आपके घर हमेशा खुशियों से भरपूर रहे अतः इसे प्रकाशित बनाए रखने के लिए इसमें तेल डाले। दूसरे गीत में भी इसी भाव के साथ - साथ वे घर में बने पकवान पापडी खाने के लिए कहते कहते हैं। लडके जब समूह में एक स्वर से इन गीतों को गाते हैं सारा माहोल गीतों के स्वरों से गूंज उठता है। 

** प्रज्वलित हीड लेकर लड़के  गीत गाते  घर - घर जाते हैं लोग हीड का स्वागत करते हैं और बच्चों को खाने के लिए पापड़ी देते हैं जिसे वे बड़े चाव से खाते हैं। हीड की अग्नि को प्रकाशित रखने के लिए तेल डालते हैं और खुशियों के प्रतीक प्रकाश को निरंतर बने रहने की कामना करते हैं। बच्चों को अपने आशीर्वाद स्वरूप हीड के नीचे के खुले हिस्से में रुपए पैसे भी डालते हैं।

** प्रकाश पर्व दीपावली पर प्रकाश से प्रकाश फैलने, खुशियों की कामना करने की सदियों पुरानी यह लोक परम्परा भी आज के बदलते माहोल में लुप्त होने के दौर से गुजर रही है। शहरों में तो लगभग लुप्त ही हो गई है परंतु गांवों में अभी भी इस परंपरा को नजदीक से देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है और आनंद लिया जा सकता है।

----- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल।

No comments:

Post a Comment